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2.12.2019

तुम मेरे लिए हमेशा अनमोल बनी रही।




युवावस्था की दहलीज पर खरा मै उस समय अपने भविष्य निर्माण मे लगा था। सफलता हर बार करीब आकर भी दुर जा रहो थी। घर मे हमेसा से अर्थाभाव रहा था। मां-बाप की सारी उम्मीदें मुझसे जुड़ी थीं। बार-बार की असफलता से हताश हो चुका था। उसी समय संयोगवश मेरे जीवन में तुम्हारा प्रवेश हुआ। मेरे संशाय दूरयकरने मे तुमने मेरी भरपूर सहायता की। परिचय से शुरू होकर वह सिलसिला पहले दोस्ती और फिर उसके कुछ ज्य़ादा हो गया। मेरे प्रति तुम्हारा अगाध समर्पण अविस्मरणीय है। मेरे लिए, मुझसे अधिक चिंतित रहने वाली थी तुम। मै तो आज तक नही समझ पाया कि ऐसा क्या मिला था तुम्हे मुझमे। मैंने पुछा भी था कई बार, पर हर बार तूम बस मुस्कुरा देतीं। मुझे तुमने प्रेम दिया, अपनापन दिया, मार्गदर्शन दिया और कई बार ज़रूरत पड़ने पर पैसा भी। बदले मे तम बस मेरा समय मांगती थी। जो कि हर संभव प्रयास से मैंने दिया भी था। घरवालों से नज़रें बचाकर रात -भर  तुम मेरे साथ घर की छत पर बैठकर  बस मुझे निहारती रहतीं। पूनम और अमावस की कितनी ही रातें हमने उस छत पर बिताई।
                 तुम हमारे रिश्ते को आगे बनाए रखने की हिमायती थी, पर घर के हालात , घरवालों का दबाव और समाज का भय कुछ इस क़दर हावी हुआ कि जीविकोपार्जन के लिए वह मकान, वह मोहल्ला, वह शहर और अपना राज्य तक छोड़ना पड़ गया। बिछड़ते समय तुम्हारा गमगीन चेहरा आज भी मुझे याद है परंतु मैं नहीं चाहता था कि मेरे इंतज़ार मे तुम मे तुम अपना जिवन गुजार दो। इसलिए मैंने तुमसे संपर्क कायम न रखा। पर तुम तुम्हारी खबर लेता रहा। बाद में पता चला, तुमने अपनी दुनिया बसा ली किसी और के साथ। तुम्हे खुशहाल देख मैं अंतकरण  से प्रसन्न होता हूं। मेरी भी सुखी गृहस्थी बस चुकी है। पर इतना कहूंगा कि आज भी तुम्हारे जितना ख्याल रखने वाली, चिंता करने वाली मित्र को ढूंढ रहा हूं, लेकिन अब तक कोई ना मिला तुम-सा। तुम मेरे लिए हमेशा अनमोल बनी रहोगी।
नवीन कुमार

औरंगाबाद (बिहार)



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