तुम हमारे रिश्ते को आगे बनाए रखने की हिमायती थी, पर घर के हालात , घरवालों का दबाव और समाज का भय कुछ इस क़दर हावी हुआ कि जीविकोपार्जन के लिए वह मकान, वह मोहल्ला, वह शहर और अपना राज्य तक छोड़ना पड़ गया। बिछड़ते समय तुम्हारा गमगीन चेहरा आज भी मुझे याद है परंतु मैं नहीं चाहता था कि मेरे इंतज़ार मे तुम मे तुम अपना जिवन गुजार दो। इसलिए मैंने तुमसे संपर्क कायम न रखा। पर तुम तुम्हारी खबर लेता रहा। बाद में पता चला, तुमने अपनी दुनिया बसा ली किसी और के साथ। तुम्हे खुशहाल देख मैं अंतकरण से प्रसन्न होता हूं। मेरी भी सुखी गृहस्थी बस चुकी है। पर इतना कहूंगा कि आज भी तुम्हारे जितना ख्याल रखने वाली, चिंता करने वाली मित्र को ढूंढ रहा हूं, लेकिन अब तक कोई ना मिला तुम-सा। तुम मेरे लिए हमेशा अनमोल बनी रहोगी।
नवीन कुमार
औरंगाबाद (बिहार)
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