मेरे हुजरे में नहीं और कही पर रख दो
आसमान लाये हो ले आओ ज़मीन पर रख दो
मैंने जिस ताक में कुछ टूटे दीए रखे हैं
चाँद तारों को भी ले जाके वही पर रख दो
अब कहाँ ढूंढने जाओगे हमारे कातिल
आप तो क़त्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो
हो वो जमुना का किनारा ये कोई शर्त नहीं
मिटटी मिटटी ही में रखनी है कही पर रख दो
आसमान लाये हो ले आओ ज़मीन पर रख दो
मैंने जिस ताक में कुछ टूटे दीए रखे हैं
चाँद तारों को भी ले जाके वही पर रख दो
अब कहाँ ढूंढने जाओगे हमारे कातिल
आप तो क़त्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो
हो वो जमुना का किनारा ये कोई शर्त नहीं
मिटटी मिटटी ही में रखनी है कही पर रख दो
राहत इंदौरी
this is nice shayri
ReplyDeleteबहुत खूब राहत साहब आप हमेशा हमारे दिलों में राज करेंगे miss you sahab
ReplyDeleteThank you
Delete👌👌
ReplyDeleteThank you so much all of you 🙏.
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