तजल्लियों का नया दायरा बनाने में
मेरे चिराग लगे हैं हवा बनाने में
अड़े थे ज़िद पे के सूरज बनाके छोड़ेंगे
पसीने छूट गए एक दीया बनाने में
मेरी निगाह में वो शख्स आदमी भी नहीं
जिसे लगा है ज़माना खुदा बनाने में
अभी इन्हें न परेशान करो मसीहाओं
मरीज़ उलझे हुए हैं दवा बनाने में
तमाम उम्र मुझे दर-ब-दर जो करते रहे
लगे हुए हैं मेरा मक़बरा बनाने में
ये चंद लोग जो बस्ती में सबसे अच्छे है
इन्ही का हाथ है मुझको बुरा बनाने बनाने।
राहत इंदौरी
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