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2.14.2020

तुम मेरे लिए क्या हो तुम सुनो तो कहें।

प्रिय मित्र,
       कैसे हो, आजकल कहा हो? दास्तां सुनो तो कहें! अतीत के गलियारे न जाने कितनी यादों को अपने आंचल में समेटे हैं। आज इनके झरोखे यकायक खुलकर मन के तारों को झंकृत कर रहे हैं। याद है, कैशोर्य का वह दिन, जब हम मिले थे। हमारा मिलन - बतियाना और मित्रता के एक नए रिश्ते में बंध जाना।- उम्र के इस दहलीज पर भी विकल कर जाता है।
     कुछ ही दिनों में तुम सिर्फ मित्र नहीं रहे, बल्कि चांद बन गए, जिसे देख कर मैं किसी फूल की तरह खिल उठती थी। शायद तुम मेरे भावनाओं को समझ गए थे, इसलिए मुझसे वादा लिया, "पढ़ना है और खूब बढ़ते जाना" और हमेशा इस वचन को याद दिलाते रहते थे। तुमने कहा प्रेम-आकर्षण में डूब कर अपने कर्तव्य को भूल जाना अच्छी बात नहीं। आज सोचती हूं तो रोमांचित हो उठती हूं के बरसों पहले भी तुम कितने संयत, समझदार और लक्ष्य को लेकर किस कदर समर्पित थे। तुमने मुझसे प्रेम पत्र नहीं लिखे, फिजिक्स और मैथ का नोट्स साझा करते रहे। तुम्हारी असीम प्रतिभा और ऋषि मुनि जैसी एकाग्रता पर मैं मुग्ध हो गई, जबकि तुम करियर पर हरदम केंद्रित रहे।महत्त्वकांक्षाएं तुम्हें मुझसे बहुत दूर ले गई। बेलगांव की धूल आंखों में चुभती है, लेकिन तुम्हारे शब्द हर कदम पर प्रेरित भी करते हैं।तुम्हारे साथ और प्रेरणादाई बातों का मैं शुक्रिया नहीं कर सकती। आखिरकार हमारा रिश्ता किसी औपचारिकता का मोहताज कहां रहा। सुनो, यूं ही आगे बढ़ते रहना। हमारे बीच प्रेम का संबंध किसी सामाजिक नाम तक तो नहीं पहुंच सका, लेकिन मेरे लिए तुम्हारी बातों ने रोशनीयो के नए द्वार जरूर खोल दिए हैं।

रेणु श्रीवास्तव, पटना
बिहार
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