प्रेम की दुनिया ऐसी वाणी है सिक्के के दो पहलू का रूप ले चुकी है। जैसे नदियां अपनी रास्ता स्वंय बदलती है, लेकिन मानव ने प्रेम का रास्ता बदल के नया रूप दे रखा है जो हमारे देश-विदेश मे प्रेम, माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, भाई-बहन के रूप मे था, लेकिन बहुत दुख है कि जो जिस्म के रूप मे तब्दील हो गया है। प्रेम करो एक अच्छी दृष्टि से न कि जिस्म के रूप मे। प्रचीन समय मे कुछ योगी व्यक्ति थे, जिन्होंने गौतम, चिश्ती और नानक, प्रेम के लिए अपने प्राण त्याग कर दिए थे। ऐसे ही हीरो बनो अपनी प्रत्येक बातों मे प्रेम झलके प्रेम करो एक इंसान के रूप में। यही है सच्चा प्रेम, अपने माता-पिता को किसी के भी प्रेम में ना ठुकराना यही है सच्चा प्रेम।
आदित्य राज सिंह
सीवान, बिहार
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